शुक्रवार, 8 मई 2020

खुलता-किवाड़ -१०

अब वह शशिकांत से मिलने जाती तो सावधानी बरतने लगी थी। लता ने घर में उठे विवाद की जानकारी देते हुए उसे कहीं अन्यत्र मिलने के लिए मना लिया था । अब वे घर के अलावा कहीं और मिलने लगे थे ।
जब भी लता उस आदमी से मिलने जाती उसकी धुकधुकी बढ़ जाती थी । यह धुकधुकी उसके साथ- साथ चलती थी। उसे कई बार लगा कि उसका पीछा किया जा रहा है और जब उसकी आशंका निर्मूल साबित होती तो वह राहत की साँस लेती थी। लता आज सीधे शशिकांत के घर पहुँच गई थी। मोड़ के पास लता को आशंका हुई , वह पलटकर पीछे देखी। दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था । फिर वह दरवाजे को धक्का दी । दरवाज़ा खुलता चला गया और वो भीतर चली गई। दोनो फेंटासी की दुनिया में खो चुके थे । शशिकांत कहे जा रहा था - तुम्हारे बग़ैर कल्पना बेमानी है, तुम मेरे प्राण हो , वह तरह-तरह के अलंकारो और उपमा से लता को रिझा लेता था , और लता फेंटासी की दुनिया में विचरण करने लगती । लता कृत्रिम ग़ुस्सा करती तो वह आदमी बिखर जाता था । उसका यूँ टूटना-बिखरना लता को ख़ूब भाता था। फिर वह एक-एक कर उसे जोड़ती और फेंटासी की दुनिया में खो जाती।
फिर एक दिन वही हुआ जिसकी आशंका थी। दरवाज़े पर दस्तक ने लता की धुकधुकी बढ़ा दी , शशिकांत भी चौंका था। कुंडी खोलते ही दरवाज़ा झटके के साथ खुलता चला गया , शशिकांत हड़बड़ाया और लता के मम्मी पापा सीधे भीतर आ गए । लता भी हड़बड़ाई , खड़ी हुई, चुनरी को व्यवस्थित करने लगी। तब तक मम्मी का हाथ लता के गाल पर जम चुका था । इस अप्रत्याशित घटना से अवाक् शशिकांत ने किसी तरह बीच- बचाव की कोशिश की तो लता रोते हुए सोफ़े पर धम्म से बैठ गई । मगर मम्मी का ग़ुस्सा कम ही नहीं हो रहा था। वह ग़ुस्से में चिल्लाते ही जा रही थी।
बड़ी मुश्किल में हालात सामान्य हुई मगर लता का सुबकना बंद ही नहीं हो रहा था । अब तक शशिकांत की चुप्पी से भी लता हैरान थी । वह कुछ भी नहीं बोला और पापा भी ख़ामोश रहे । बीच-बीच में वह स्थिति को संभालने की कोशिश करते रहे। शशिकांत से पुछा क्या वह लता से शादी के लिए तैयार हैं ? वह क्या चाहता है? ऐसे ढेरों प्रश्न एक साथ पुछे गए । और शशिकांत के इंकार सुनते ही मम्मी की त्योरियाँ फिर चढ़ गई। वह शशिकांत को भला-बुरा कहने लगी। तब लता के बीच में कूदने से मामला और बिगड़ गया।
उस दिन लता को लगभग खींचते हुए घर ले जाया गया। मम्मी इतने ग़ुस्से मेन थी कि उसने लता के घर से बाहर नहीं निकलने का फ़रमान तक सुना दिया । पापा के समझाने पर
लता के कालेज जाने पर इस शर्त पर तैयार हुई, कि उसे कालेज छोड़ने-लेने कोई न कोई जाएगा। इतनी बंदिश से लता बेहद दुखी रहने लगी पर ख़ुशी इस बात की है कि वह शशिकांत से कालेज में मिल लेती थी।
लता के लिए यह किसी त्रासदी से कम नहीं था। पास होते हुए वह उस आदमी की बाँहों मे नहीं समा पा रही थी , जिसे वह बेइंतहा प्यार करती है। उसकी इच्छा होती कि वह सभी बंदिशे एक झटके में तोड़ दे और किराए का अलग घर लेकर रहे मगर शशिकांत ने इसके लिए मना करते हुए कहा था कि मैं भी तो तुम्हारे लिए तड़फ रहा हूँ, वक़्त का इंतज़ार कर रहा हूँ। फिर कहीं दूर शायद दूसरा देश चले जाएँगे । जहाँ समाज और परम्परा के बंधन हमारे मिलन में बाधा नहीं बनेंगे। तुम मेरे साथ चलोगी न ! मैं तुम्हें अभी अपने घर ले जा सकता हुँ मगर तुम जानती हो तुम्हारे मम्मी पापा इसके लिए तैयार नहीं होंगे । वे तभी तैयार होंगे जब मैं तुमसे शादी करूँगा, और तुम जानती हो कि शादी के नाम से ही मुझे चिढ़ है। फिर तुम भी तो तो कभी जीवन मे विवाह नहीं करने का निर्णय लिया है, उस निर्णय का क्या? तुम इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती हो?
लता को लगता कि शशिकांत भी उसे दिलों- जान से प्यार करता है। तभी तो वह उसके मान-सम्मान को लेकर चिंता करता है। काश वह शशिकांत के पास रह पाती। एक तरफ़ सपनो की अनोखी दुनिया और दूसरी तरफ़ कठोर वास्तविकता के बीच लता झुल रही थी। लता सोचती थी कि इस तरह का दोहरा जीवन क्या कोई और जी रहा है।
फिर एक दिन शशिकांत ने बताया कि कनाडा में नौकरी मिल रही है, और वह उसे शीघ्र ही ले जाएगा। तब तक वह धैर्य के साथ रहेगी । लता ख़ुशी से झूम गई , उसका मन नाचने को हो गया वह बेहद ख़ुश होकर घर लौटी थी लेकिन शशिकांत के दूर जाने को लेकर उस रात वह रोई भी बहुत। मन ही मन वह डर भी रही थी कि कहीं वह आदमी उसे कनाडा जाकर भुल तो नहीं जाएगा। वह कनाडा कैसे जाएगी ? क्या वह घर में सब कुछ बता देगी, बग़ैर किसी से कुछ कहे चुपचाप चली जाएगी। वह अपने मम्मी पापा को भी दुखी नहीं करना चाहती थी।
फिर वह दिन भी आ गया , शशिकांत ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। कनाडा जाने से पहले उस आदमी की बाँहों में पूरा दिन गुज़ारने की आस अधूरी रह गई। इस ख़बर से लता के घरवाले भी ख़ुश थे मगर लता के लिए यह असहय । जिस दिन शशिकांत कनाडा के लिए रवाना हुआ लता दिल खोलकर रोना चाहती थी। उस दिन उसे स्वयं पर भी बेहद ग़ुस्सा आया । बार-बार उसके मन में एक ही प्रश्न उठ रहे थे कि आख़िर वह इतना कायर कैसे हो गई, उस आदमी को वह ट्रेन में भी बिठाने नहीं जा पाई, जिसने उसकी ख़ुशी के लिए नौकरी छोड़ दी , देश छोड़ कर जा रहा है।
जबकि उसे याद है कालेज छोड़कर जाने से पहले शशिकांत ने ट्रेन का समय बताते हुए लता से स्टेशन आने का वादा लेते हुए कहा था मेरे लिए तुम्हें छोड़कर कहीं जाना बेहद कष्टदायक है । पता नहीं कितने दिन यह कष्ट झेलना पड़ेगा । तुम नहीं जानती मेरे लिए तुम सब कुछ हो, एक बार स्टेशन आओगी न!
लता के ज़ेहन में उस आख़िरी मुलाक़ात की एक-एक बातें बरसात की बादलों की तरह उमड़-घुमड़ रहे थे। उस आदमी ने लता को कितना ढाँढस बँधाया था , लता ठीक से रो भी नहीं पाई थी। उसका दिल बैठा जा रहा था। लता ने कहा भी था कि उसे साथ ले चलो।
तब शशिकांत ने कहा था लता तुम चिंता मत करो, अभी हमारे लिए वक़्त और घड़ी की सुइयाँ दोनो उलटा घुम रही है, देखना एक दिन इन सुइयों का घुमना रोक दूँगा और हम एक हो जाएँगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें