मैं शादी नहीं करूँगी, मुझे बहु मत बोलिये। यह बात जितनी माँ को चुभ गई थी, शायद उतना लता को भी। तभी तो वह घर आने के बाद भी बार-बार यही बात सोच रही थी। ऐसा क्या कह दिया था माँ ने जिस पर इस बुरी तरह से नाराज़ होकर बग़ैर उसकी बात सुने चली आई थी।
अंधेरा से जी घबरांने लगा तो लता ने कमरे की लाईट जला ली। बिस्तर पर लेटते ही उसे अपने कहे पर पछतावा होने लगा। जब वह मन ही मन शशिकांत के बारे में सोचते हुए हर रविवार उसके घर पहुँच जाती थी तब वह सिर्फ़ शादी और बहु की बात पर इतनी नाराज़ कैसे हो सकती है।
ऐसा किसी को आघात पहुँचाना क्या उचित हैलता के लिए? कभी-कभी लता सोचती थी कि वह सब उसका प्रारबध है। शायद यह पहले से तय था। कल जब वह कालेज पहुँचेगी तो शशिकांत की क्या प्रतिक्रिया होगी?
बार-बार लता के ज़ेहन में बहु और शादी को लेकर माँ की आवाज़ गूँज रही थी, वह अपने हाथों से जितनी बार कान को ढकने की कोशिश करती और तेज़ हो जाती। आँखे बंद करती तो माँ का चेहरा दिखाई पड़ता, वह हड़बड़ा कर बिस्तर पर बैठ जाती।
अपने शादी नहीं करने के निर्णय पर अडिग रहने तरह-तरह के तर्क से जूझते रही लता पूरी रात। शशिकांत को लेकर भी उसने क्या नहीं सोचा । क्या माँ ने शशिकांत के कहने पर ही यह रिश्ता जोड़ने को तैयार हुई या फिर उस माँ की सोच है कि जिसके बेटे को कोई लड़की नहीं मिल रही है, परंतु लता यह भी मानने को तैयार नहीं थी कि शशिकांत को कोई लड़की न मिले । दिखने में शशिकांत ठीक-ठाक ही था , स्वयं का घर और अच्छी ख़ासी नौकरी।
पूरी रात लता के लिए किसी भी निर्णय पर पहुँचना मुश्किल होता जा रहा था। वह जितना सोचती उतना ही उलझते चली जाती ।
लता बार-बार माँ को दिए आघात पर रुक जाती, पछताती । सवाल से शुरू हुई घर तक की यात्रा की एक-एक कड़ियों को जोड़ती, उसे नये रूप देती, उसे तोड़ती। इतना होने के बाद भी उसे चैन नहीं मिल रहा था । नींद आँखो से कोसो दूर थी। उसने कितनी ही बार कमरे की लाईट चालू और बंद किया था।
काफ़ी विचार मंथन और अंतर्द्वंद के बाद लता ने सोचा था कि यह उसका प्रारबध था और वह स्वयं को कमज़ोर होने नहीं देगी। उसके शादी नहीं करने का निर्णय उसने सब कुछ सोच कर लिया है और वह अपने निर्णय से नहीं डिगेगी। किसी को आघात पहुँचे तो पहुँचे। उसे उनसे क्या लेना देना है । फिर वह कब सोई पता नहीं चला।
दूसरे दिन जब जागी तो पहले से ज़्यादा तरोताज़ा महसूस कर रही थी। कल के अंतर्द्वंद से वह पूरी तरह मुक्त थी । कालेज में भी वह इस तरह सहज रही, मानो कल कुछ हुआ ही नहीं था । अपने काम में व्यस्त लता का शशिकांत से सामना भी हुआ परंतु जब शशिकांत ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तो लता के मन में फिर एक बार अंतर्द्वंद उछाले मारने लगा , लेकिन उसने अपने मन के भाव को चेहरे तक आने के पहले ही रास्ता बदल दी।
लता ने तय कर लिया था कि अब वह शशिकांत के घर नहीं जाएगी।
अंधेरा से जी घबरांने लगा तो लता ने कमरे की लाईट जला ली। बिस्तर पर लेटते ही उसे अपने कहे पर पछतावा होने लगा। जब वह मन ही मन शशिकांत के बारे में सोचते हुए हर रविवार उसके घर पहुँच जाती थी तब वह सिर्फ़ शादी और बहु की बात पर इतनी नाराज़ कैसे हो सकती है।
ऐसा किसी को आघात पहुँचाना क्या उचित हैलता के लिए? कभी-कभी लता सोचती थी कि वह सब उसका प्रारबध है। शायद यह पहले से तय था। कल जब वह कालेज पहुँचेगी तो शशिकांत की क्या प्रतिक्रिया होगी?
बार-बार लता के ज़ेहन में बहु और शादी को लेकर माँ की आवाज़ गूँज रही थी, वह अपने हाथों से जितनी बार कान को ढकने की कोशिश करती और तेज़ हो जाती। आँखे बंद करती तो माँ का चेहरा दिखाई पड़ता, वह हड़बड़ा कर बिस्तर पर बैठ जाती।
अपने शादी नहीं करने के निर्णय पर अडिग रहने तरह-तरह के तर्क से जूझते रही लता पूरी रात। शशिकांत को लेकर भी उसने क्या नहीं सोचा । क्या माँ ने शशिकांत के कहने पर ही यह रिश्ता जोड़ने को तैयार हुई या फिर उस माँ की सोच है कि जिसके बेटे को कोई लड़की नहीं मिल रही है, परंतु लता यह भी मानने को तैयार नहीं थी कि शशिकांत को कोई लड़की न मिले । दिखने में शशिकांत ठीक-ठाक ही था , स्वयं का घर और अच्छी ख़ासी नौकरी।
पूरी रात लता के लिए किसी भी निर्णय पर पहुँचना मुश्किल होता जा रहा था। वह जितना सोचती उतना ही उलझते चली जाती ।
लता बार-बार माँ को दिए आघात पर रुक जाती, पछताती । सवाल से शुरू हुई घर तक की यात्रा की एक-एक कड़ियों को जोड़ती, उसे नये रूप देती, उसे तोड़ती। इतना होने के बाद भी उसे चैन नहीं मिल रहा था । नींद आँखो से कोसो दूर थी। उसने कितनी ही बार कमरे की लाईट चालू और बंद किया था।
काफ़ी विचार मंथन और अंतर्द्वंद के बाद लता ने सोचा था कि यह उसका प्रारबध था और वह स्वयं को कमज़ोर होने नहीं देगी। उसके शादी नहीं करने का निर्णय उसने सब कुछ सोच कर लिया है और वह अपने निर्णय से नहीं डिगेगी। किसी को आघात पहुँचे तो पहुँचे। उसे उनसे क्या लेना देना है । फिर वह कब सोई पता नहीं चला।
दूसरे दिन जब जागी तो पहले से ज़्यादा तरोताज़ा महसूस कर रही थी। कल के अंतर्द्वंद से वह पूरी तरह मुक्त थी । कालेज में भी वह इस तरह सहज रही, मानो कल कुछ हुआ ही नहीं था । अपने काम में व्यस्त लता का शशिकांत से सामना भी हुआ परंतु जब शशिकांत ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तो लता के मन में फिर एक बार अंतर्द्वंद उछाले मारने लगा , लेकिन उसने अपने मन के भाव को चेहरे तक आने के पहले ही रास्ता बदल दी।
लता ने तय कर लिया था कि अब वह शशिकांत के घर नहीं जाएगी।
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