गुरुवार, 7 मई 2020

खुलता- किवाड़ -९

लता आज कालेज नहीं गई। वह घर से भी नहीं निकली , अपने कमरे से भी। मोहल्ले की कानाफूसी घर में सुनाई देने लगी थी। उस आदमी से लता के सम्बंध को लेकर घर में तीखे सवाल ही नहीं किए गए थे बल्कि लता के चरित्र पर भी उँगली उठाई गई थी।सुबह से शुरू हुई यह किच-किच रुकने का नाम ही नहीं लिया।
इससे पहले भी किच- किच होती रही लेकिन उसके चरित्र पर सवाल नहीं किया गया। जब उसने शादी नहीं करने का निर्णय लिया था तब भी। हाँ, मम्मी ने ज़रूर नाराज़गी दिखाते हुए कहा था कि वह सब यहाँ नहीं चलेगा। मगर इस बार शशिकांत को लेकर जब उसने कहा कि वह उससे प्रेम करती है तो पूरा घर ही उस पर पिल पड़ा था। लता अपने आप को भयंकर आहत महसूस कर रही थी। कोई उसके प्रेम को समझने तैयार नहीं हुआ । क्या कोई बग़ैर शादी किए अपने प्यार को निभा नहीं सकती। एक तरफ़ शशिकांत का प्यार तो दूसरी तरफ़ मम्मी पापा का दूलार । फिर भी वह आज स्वयं को अकेला महसूस क्यों कर रही है।
लता को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक तरफ़ उसका अपना शादी नहीं करने का निर्णय और दूसरी तरफ़ शशिकांत का निश्चल प्रेम।
इसी अंतर्द्वंद में उलझी लता अपनी डायरी निकाल कविता लिखने लगी -
प्रेम का अंत क्या कोई रिश्ता है
प्रेम को कोई रिश्ते
का नाम देना ज़रूरी है
जब राधा और कृष्ण का
प्रेम जब स्वीकार्य है
तब इस राधे के लिए
बंधन क्यों
पता नहीं लता और भी क्या - क्या लिखते रही ।
कविता लिखने के बाद उसे थोड़ी राहत मिली , तब वह कमरे से बाहर निकली। किसी ने उसे कुछ नहीं कहा , मगर सबके चेहरे से स्पष्ट था कि उससे अभी भी सब नाराज़ हैं। वह किसी भी हालत में शशिकांत को खोना नहीं चाहती थी और न ही अपने मम्मी पापा को। घर वालों के स्पष्ट चेतावनी से वह विचलित थी। वह चुपचाप किचन में गई उसको खाना खाने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी। मगर मम्मी की चेतावनी की वजह से वह किचन तक आई थी। मम्मी ने साफ़ कर दिया था कि यदि वह आज खाना नहीं खाएगी तो उसके लिए इस घर में कभी खाना नहीं बनेगा , ख़ुद बनाना और ख़ाना।
घर वालों की नाराज़गी कम करने का लता के लिए यह एक अवसर था। इसलिए इच्छा न होते हुए भी उसे खाना पड़ा। पता नहीं क्यों दूसरे के ख़ुशी के लिए अपनी इच्छाओं का गला घोंटना पदता है। एक बार लता ने यह सवाल शशिकांत से भी पूछा था, तब शशिकांत ने कहा था कि रिश्ते निभाने के लिए स्वयं की ख़ुशी का उस हद तक तिलांजलि नहीं देना चाहिये जिससे कोई ज़िंदा लाश बनकर रह जाये। पूरी दुनिया ही उजड़ जाने का आभास हो।
एक तरफ़ वह आदमी था जो उसकी हर प्रश्नो का सहज रूप से जवाब देता था, उसके हर निर्णय पर मुस्कुराकर सहमति देता था, दूसरी तरफ़ उसका अपना कहा जाने वाला घर था । जहाँ परम्परा, संस्कार की दुहाई के साथ इस बात के लिए भी पाबंदी थी कि दुनिया क्या कहेगी? समाज क्या कहेगा?
लता का मन विद्रोह करने के लिए आमदा था । पर वह अपने पापा से बहुत प्यार करती थी । पापा ने उसे हर मुश्किल राह में उसका साहस बढ़ाया था। मम्मी की परम्परा और मर्यादा में रहने की चेतावनी के समय भी पापा ने ही उसका साथ दिया था। लता के लिए किसी एक को पुरी तरह छोड़ देना आसान नहि था, इसलिए वह बेहद परेशान रहने लगी थी।
ऐसे में शशिकांत का लता के घर जाने को लेकर बढ़ते दबाव से लता चिंतित होने लगी। पहले तो लता ने किसी न किसी तरह का  बहाना बनाकर उसे  इधर-उधर की बातों में उलझा देती थी , मगर इन दिनो शशिकांत ज़िद पर उतर आया था । तब लता को बताना पड़ा कि उसे लेकर इन दिनो घर में तनाव है, ऐसे में वह घर आया तो लता की मुसीबत बढ़ जाएगी और हो सकता है शशिकांत को अपमानित भी होना पड़े। लता सब कुछ सहन कर सकती थी अपना अपमान भी वह सह रही थी लेकिन शशिकांत के अपमान को वह किस तरह बर्दाश्त करेगी।
यह बात सही थी पापा भले ही वक़्त की नज़ाकत को भाँप कर शशिकांत के सामने कुछ नहीं कहते। मगर मम्मी तो चुप रहने वाली नहीं है। वह सीधा कहती तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस घर में क़दम रखने की। तुरंत निकलो , तब लता क्या बोलती। उसे याद है कालेज के दिनो मे एक लड़का नोट्स लेने घर तक आ गया था , पापा उसे भीतर ले आए थे, मगर मम्मी ने उसे इतना भला-बुरा कहा कि फिर किसी की उसके घर आने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि इस घटना का पुरे कालेज में ख़ुलासा हो गया था, और उसका ख़ूब उपहास भी उड़ाया गया था। इस घटना को लता आज तक नहीं भूली है।
लता को महसूस होने लगा था कि घर वाले उस आदमी को लेकर जितनी पाबंदी लगा रहे है, उतना ही उसका प्रेम बढ़ता ही जा रहा है। हर पाबंदी के बाद वह अपने प्रेम को नया रूप देने लगती।

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