ज़िंदगी रुक नहीं सकती , किसी भी समय नए जीवन की शुरुआत हो सकती है। लता का हाल इन दिनो बिलकुल ऐसा ही था। लता का सम्बंध एक ऐसे आदमी से बन गया था जिसे वह ठीक से जानती तक नहीं थी , ऐसे आदमी के प्रति समर्पण को लेकर वह इन दिनो अंतर्द्वंद में थी। एक बार उसे लगता वह ठीक कर रही है मगर दूसरे ही पल वह अपने निर्णय को लेकर परेशान हो जाती थी
शशिकांत ने साफ़ कर दिया था कि वह भी लता से बेइंतहा प्रेम करता हाई। वह जब चाहे उसके घर आ सकती है। एक बार शशिकांत ने कहा था लता मैंने जीवन में शादी नहीं करने का निर्णय लिया था परंतु मैं कितना ग़लत था।
लता के मन में अब भी उसे लेकर संदेह था , वह उससे कई प्रश्न करना चाहती थी मगर लता को डर भी था कि कहीं उसके प्रश्नो के उत्तर की बजायवह बुरा मान गया तो?
शशिकांत ने एक बार बताया था कि उसकी शादी बचपन मे ही अनिता से की गई थी , उस शादी को मैं नहीं मानता लेकिन अनिता अब भी उसका इंतज़ार करते गाँव में बैठी है। उसका राह देख रही है। लता ने तब पुछा था कि वह कैसे दिखती है ? तब उसने लता को कहा था कि तुम्हारे पैर की धोवन है। लता तब बहुत ख़ुश हुई थी लेकिन घर आने के बाद उसे पैर की धोवन शब्द को लेकर बहुत बुरा लगा था । औरतों के प्रति शशिकांत के इस सोच को लेकर वह परेशान भी हुई थी।
अनिता के प्रति लता की पूरी सहानुभूति थी और वह यदा कदा शशिकांत के सामने उसका ज़िक्र करती थी। उसके ज़िक्र से कई बार शशिकांत बुरी तरह नाराज़ भी हुआ , एक बार तो उसने यहाँ तक कह दिया कि अब के बाद यदि उस अनपढ़ का नाम भी लिया तो वह उससे बात भी नहीं करेगा।
लता इस व्यवहार को लेकर दुखी भी हुई , आख़िर अनिता के अनपढ़ रहने में उसकी क्या ग़लती है, मगर उसने यह सोचकर चुप्पी साध ली कि जब उस आदमी को ही अनिता की परवाह नहीं है, तब भला वह परवाह क्यों करे।
इधर लता के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर मोहल्ले तक में काना-फुंसी होने लगी थी। लता यह सब जान समझ रही थी । उसके लिए क़दम पीछे खींचने का सवाल ही नहीं उठता था । उसने महसूस किया था किअब तो उसके आने और जाने को लेकर शशिकांत के मोहल्ले में भी कानाफुसी होने लगी थी। एक दिन तो एक छिछोरे टाईप लड़के ने बड़े ही भद्दे कमेंट्स पास किया तो उससे रहा नहीं गया और वह उससे जा भिड़ी। चौराहे में तमाशा खड़ा हो गया। जितनी मुँह उतनी बात। लता को तब अपने आप पर बहुत ग़ुस्सा आया कि वह आख़िर ऐसे लोगों के मुँह क्यों लगी।
उसने शशिकांत से भी ज़िक्र किया कि कैसे उसे लेकर मोहल्ले में चर्चा हो रही है। तब शशिकांत ने इतना ही कहा था कि इसके लिए तुम ही ज़िम्मेदार हो , मैं तो कब से कह रहा हूँ कि हम एक हो जाये।
एक हो जायें? लता घर जाने के बाद इस वाक्य को लेकर गुनती रही। कैसे एक हो जायें। लता आख़िर शशिकांत को जानती ही कितना है, लता को और कितना जानना था, उस आदमी को। तीन चार माह हो गए थे, वह रोज़ ही तो उस आदमी से मिल ही रही थी। फिर क्या बाक़ी रह गया है जानने समझने में। फिर भी लता को क्यों लग रहा था कि शशिकांत को अभी और जानना समझना है।
बात चारदिवारी से निकल चुकी थी , दिलों की धड़कन अब कानाफूसी तक आ पहुँची है। मगर कब तक यह सब चलता रहता? इस सम्बंध का क्या होगा? दोनो की ज़िंदगी में क्या मोड़ आने वाला है?
शशिकांत ने साफ़ कर दिया था कि वह भी लता से बेइंतहा प्रेम करता हाई। वह जब चाहे उसके घर आ सकती है। एक बार शशिकांत ने कहा था लता मैंने जीवन में शादी नहीं करने का निर्णय लिया था परंतु मैं कितना ग़लत था।
लता के मन में अब भी उसे लेकर संदेह था , वह उससे कई प्रश्न करना चाहती थी मगर लता को डर भी था कि कहीं उसके प्रश्नो के उत्तर की बजायवह बुरा मान गया तो?
शशिकांत ने एक बार बताया था कि उसकी शादी बचपन मे ही अनिता से की गई थी , उस शादी को मैं नहीं मानता लेकिन अनिता अब भी उसका इंतज़ार करते गाँव में बैठी है। उसका राह देख रही है। लता ने तब पुछा था कि वह कैसे दिखती है ? तब उसने लता को कहा था कि तुम्हारे पैर की धोवन है। लता तब बहुत ख़ुश हुई थी लेकिन घर आने के बाद उसे पैर की धोवन शब्द को लेकर बहुत बुरा लगा था । औरतों के प्रति शशिकांत के इस सोच को लेकर वह परेशान भी हुई थी।
अनिता के प्रति लता की पूरी सहानुभूति थी और वह यदा कदा शशिकांत के सामने उसका ज़िक्र करती थी। उसके ज़िक्र से कई बार शशिकांत बुरी तरह नाराज़ भी हुआ , एक बार तो उसने यहाँ तक कह दिया कि अब के बाद यदि उस अनपढ़ का नाम भी लिया तो वह उससे बात भी नहीं करेगा।
लता इस व्यवहार को लेकर दुखी भी हुई , आख़िर अनिता के अनपढ़ रहने में उसकी क्या ग़लती है, मगर उसने यह सोचकर चुप्पी साध ली कि जब उस आदमी को ही अनिता की परवाह नहीं है, तब भला वह परवाह क्यों करे।
इधर लता के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर मोहल्ले तक में काना-फुंसी होने लगी थी। लता यह सब जान समझ रही थी । उसके लिए क़दम पीछे खींचने का सवाल ही नहीं उठता था । उसने महसूस किया था किअब तो उसके आने और जाने को लेकर शशिकांत के मोहल्ले में भी कानाफुसी होने लगी थी। एक दिन तो एक छिछोरे टाईप लड़के ने बड़े ही भद्दे कमेंट्स पास किया तो उससे रहा नहीं गया और वह उससे जा भिड़ी। चौराहे में तमाशा खड़ा हो गया। जितनी मुँह उतनी बात। लता को तब अपने आप पर बहुत ग़ुस्सा आया कि वह आख़िर ऐसे लोगों के मुँह क्यों लगी।
उसने शशिकांत से भी ज़िक्र किया कि कैसे उसे लेकर मोहल्ले में चर्चा हो रही है। तब शशिकांत ने इतना ही कहा था कि इसके लिए तुम ही ज़िम्मेदार हो , मैं तो कब से कह रहा हूँ कि हम एक हो जाये।
एक हो जायें? लता घर जाने के बाद इस वाक्य को लेकर गुनती रही। कैसे एक हो जायें। लता आख़िर शशिकांत को जानती ही कितना है, लता को और कितना जानना था, उस आदमी को। तीन चार माह हो गए थे, वह रोज़ ही तो उस आदमी से मिल ही रही थी। फिर क्या बाक़ी रह गया है जानने समझने में। फिर भी लता को क्यों लग रहा था कि शशिकांत को अभी और जानना समझना है।
बात चारदिवारी से निकल चुकी थी , दिलों की धड़कन अब कानाफूसी तक आ पहुँची है। मगर कब तक यह सब चलता रहता? इस सम्बंध का क्या होगा? दोनो की ज़िंदगी में क्या मोड़ आने वाला है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें