सोमवार, 4 मई 2020

खुलता-किवाड़ -६

मैं शादी नहीं करूँगी का निर्णय को लेकर लता जितनी अडिग थी उतनी ही इन दिनो वह शशिकांत की बेपरवाही से दुखी थी। वह जब भी कालेज में होती शशिकांत से प्रतिक्रिया की उम्मीद करती। परंतु शशिकांत इस सबसे अनजान और बेपरवाह केवल औपचरिकता निभाता। हद तो तब हो गई जब दो - तीन रविवार को शशिकांत के घर नहीं जाने के बावजूद उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
लता जब भी कालेज मे शशिकांत के सामने होती और शशिकांत औपचारिक अभिवादन कर मुस्कुराता , लता को लगता कि अब वह उसके घर नहीं आने की वजह पुछेगा ? वह इसे लेकर काफ़ी मानसिक यंत्रना झेल चुकी थी। वह चाहती तो इससे मुक्त भी हो सकती थी परंतु पता नहींक्यों वह ऐसा नहीं कर पा रही थी । एक अनजाना आकर्षण उसे खींचतारहता था। वह एक अनोखी मायाजाल मे फँस गई थी। उसे लगता कि वह शशिकांत से प्रेम करने लगी है। एक अनजाना रिश्ता बुना जाने लगा था। उसकी इच्छा होती वह स्वयं क्यों नहीं पुछ लेती या स्वयं क्यों नहीं बता देती कि वह उसके घर क्यों नहीं आ रही है। कई बार तो उसका मन करता शशिकांत की बाँह पकड़े और लड़ पड़े।
लता अपराध बोध से ग्रसित होने लगी थी , वह एक ऐसे चौराहे पर खड़ी थी जहाँ से वह शशिकांत की तरफ़ दो क़दम बढ़ाती तो चार क़दम स्वयं पीछे हट जाती थी।
शशिकांत आज दूसरे दिन भी कालेज नहीं आया तो लता चिंता में डुब गई। हक़ीक़त पता करने की कोशिश मे वह सिर्फ़ इतना जान पाई शशिकांत ने फ़ोन पर अवकाश लिया है । एक बार तो उसकी इच्छा भी हुई कि वह मोबाईल लगाकरपुछ ले।
आज चौथा दिन था शशिकांत के कालेज नहीं आने का। तब लता ने सोचा कि कालेज के बाद वह सीधे घर जाकर हक़ीक़त जान लेगी। कालेज से छूटते ही उसका मन हुआ की वह आख़िर शशिकांत के घर क्यों जाना चाहती है परंतु अनायास उसके क़दम शशिकांत के घर की ओर बढ़ गए । शाम का धुँधलका गहराने लगा था, वह उस मोढ़ तक पहुँच गई जहाँ से शशिकांत का घर दिखलाई पड़ता था । उसने अपने क़दमों को सम्भाल- सम्भाल कर रखते हुए आगे बढ़ाया , सन्नाटा पसरा हुआ था, उसके दिल की धड़कन तेज़ी से धड़कने लगा। वह घर के पास पहुँची तो वह चौंकी! दरवाज़ा खुला था, अंदर महिलाओं का हुजुम बाहर से ही दिख रहा था।
वह दरवाज़े पर पहुँची तो कितनी ही नज़र उसकी तरफ़ उठी। वह झिझकी, स्वयं को आस्वस्त किया कि वह सही पते पर है, फिर वह जैसे ही कमरे में क़दम रखी । एक दो महिलाओं ने उसके लिए सोफ़े की सीट छोड़ दी । वह अवाक् सोफ़े पर बैठ गई । ख़ामोशी गहराने लगा । ऐसा लग रहा था कि यहाँ कोई है ही नहीं। लता की चिंता और बढ़ गई। मन में आशंका- कुशंका से वह भीतर ही भीतर व्याकुल होने लगी। तभी भीतर से एक महिला पानी का गिलास लेकर आयी । ट्रे सामने करते ही लता का हाथ कैसे गिलास तक पहुँच गया वह जान ही नहीं पाई । और जब गिलास उठा लिया तो वह एक ही साँस में गिलास ख़ाली भी कर दी।
महिलाएँ अब भी ख़ामोश थी और लता की कुछ पुछने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी नज़रें शशिकांत और उसकी माँ को ढूँढने लगी, परंतु दोनो ही कहीं नहीं दिख रहे थे। वह भीतर जाने में संकोच कर रही थी, और वह इतना तो समझ चुकी थी, कि कुछ अनिष्ट हुआ है। पर क्या?
शाम और गहरा होने लगा, महिलाएँ एक-एक कर जाने लगी थी और अब घर में गिनती की महिलाएँ रह गई थी। लता ने अपने भीतर का साहस बँटोरा और साथ बैठी महिला से पुछा- ये सब कब हुआ?
जवाब आया, पिछले चार दिनो से अस्पताल में भर्ती थी , डाक्टर बीमारी का पता लगाते जब स्वयं में जीने की इच्छा ही न हो। आज सुबह ही अंतिम साँसे ली। शशिकांत का क्या होगा ? वह तो पुरी तरह अपने माँ पर निर्भर था। एक गिलास गरम पानी तक नहीं कर सकता।
तभी बाहर हलचल बढ़ गई। शशिकांत भीतर आया । लता और उसकी नज़रें मिली भी तो लता नज़रें चुराने लगी।पता नहीं क्यों लता को लगा कि वह शशिकांत का सामना नहीं कर पाएगी और चुपचाप बाहर निकल गई।
जैसे-तैसे वह घर पहुँची तो उसके देर से आने को लेकर घर में हंगामा हो गया। उस पर प्रश्नो के बौछार होने लगे। उसके जवाब से किसी को कोई लेना-देना नहीं था । वह एक प्रश्न का उत्तर देना चाहती तो दूसरा प्रश्न आ जाता। वह क्या जवाब देती। चुपचाप अपने कमरे में चली गई। जाते - जाते उसने सिर्फ़ इतना सुना अम्माँ कह रही थी अब तो इसके हाथ पीले कर ही दो , बहुत छूट दे रखी है, पछताना पड़ेगा।
कमरे में जाकर लता बिस्तर पर पसर गई। उसे आज कुछ ज़्यादा ही थकावट महसूस हो रही थी। दिल बैठा जा रहा था, घर वालों के इस व्यवहार से दुखी लता स्वयं को अकेला महसूस करते रही। ऐसा नहीं है कि उसके देर से आने को लेकर पहली बार प्रश्न उठे हो । पहले भी जब वह कभी शाम के बाद घर लौटी तो उसे कई तरह के न केवल प्रश्नो का सामना करना पड़ा है बल्कि उसे आवारा और न जाने क्या-क्या गालियाँ दी गई। परिवार को कलंकित करने का तोहमत तक लगाया गया। एक बार तो माँ ने उसे थप्पड़ तक जड़ दिया था । जब भी वह देर से घर आती उसके हाथ पीले करने का फ़रमान जारी कर दिया जाता।
और वह चुपचाप रह जाती। अपने ही घर में अकेले, भूखी-प्यासी । तब उसके ज़ेहन में उलाहना के शब्द चित्कार उठता। इस लड़की को  माँ-बाप , परिवार से कोई लेना नहीं सिर्फ़ अपनी ख़ुशी के लिए जीती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें