मंगलवार, 12 मई 2020

प्रतिक्रिया

































इस दौरान मुझे भरपूर प्यार मिला और पाठकों की प्रतिक्रिया भी आइ कुछ ने फ़ोन पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी 


सोमवार, 11 मई 2020

खुलता-किवाड़ -१३

लता घर लौट आई थी? क्या लता सचमुच लौट आई थी ? हाँ वह अपने घर तो लौट आई थी लेकिन वह वर्तमान परिस्थिति को लेकर जूझती रही । वह न अनिता के दूर चले जाने की चेतावनी को भूल पा रही थी न अपने प्यार को । वह इतनी आसानी से कैसे हार जाती। वह रात में शशिकांत के साथ बिताए एक-एक पल को जोड़ती रही। लता पूरी तरह से बदल चुकी थी। उसने निर्णय ले लिया था। सुबह नींद खुली तो वह तरोताज़ा महसूस कर रही थी। वह किचन में गई । मम्मी से कहा चाय बना देती हूँ । चाय का कप लिये आँगन में आई। कुम्हलाये पौधों को सँवारा, सूखे और बेकार पत्तों को अलग किया , फिर खाद दिया, पानी दी,तो गुलाब मुस्कुराने लगा। मम्मी पापा के चेहरे भी।
किचन में गई , मम्मी का हाथ बटाने लगी , फिर अपने कमरे में जाकर सब कुछ व्यवस्थित करने लगी , सजाने लगी। तैयार होकर नाश्ता किया। फिर कालेज चली गई। कालेज से लौटकर फिर वह घर के काम में व्यस्त हो गई। जीवन महकने लगा , वह फिर से गीत गुनगुनाने लगी। प्रेम का गीत। ऐसा गीत जो आशाओं का आकाश उठाए हुए था। उस आदमी के लिए जो उसे बेइंतहा प्रेम किया है। वह डायरी खोलती, उस आदमी का नाम लिखती। उस नाम पर ऊँगली फेरती, चूमती और शरमा जाती।
एक दिन, दो दिन, तीन... पूरे हफ़्ते वह यही सब करते रही । पता नहीं जिस दिन से लता उस आदमी के घर से आई थी क्या जुनून सवार हो गया था कि वह घर के हर काम को मन लगाकर करने लगी थी , दुनियादारी की छोटी-छोटी चीज़ें सीखने की कोशिश करती। 
लता के इस बदलते व्यवहार की घर पर भी चर्चा होती। लता ने कई बार महसूस भी किया था कि उसके बारे में बात की जा रही है । कभी कभी वह मम्मी पापा के पास जाकर बैठ जाती , लता के सिर पर पापा हाथ फेर देते , लता को यह सब बहुत अच्छा लगता। बाद में अपने कमरे में आकर लता सोचती वह इतने प्यार करने वाले मम्मी पापा से कैसे दूर रह सकती है। 
लता के लिए किसी को भी छोड़ना आसान नहीं था। लता के मन में एक बोझ , बेबसी घर कर जाती , फिर वह इसे झटक देती । उस आदमी को लेकर लता ने निर्णय ले लिया था। मम्मी पापा को अपने निर्णय से अवगत कराने का अवसर ढूँढ रही थी। फिर वह दिन आ गया जब लता ने मम्मी पापा के सामने अपना इरादा खोलकर बैठ गई। लता ने कोई भूमिका नहीं बाँधी। जैसे कोई शपथ पत्र दाख़िल करता है । सीधे -सीधे कहा- मैं शशिकांत को भूल नहीं पा रही , उसके बग़ैर जी नहीं सकती । मुझे उसके साथ रहना ही होगा। मेरी ख़ुशी के लिए आपलोगो को अनुमति देनी होगी। मैं आप लोगों को भी नहीं छोड़ सकती।इसलिए उस आदमी को मैं इसी घर में लाना चाहती हूँ। 
लता अपने रौ में बोलते जा रही थी। अपने मन को खोल दिया था। मन का बोझ उतर गया था। लता की पीड़ा आँखो से बहने लगी।
सब कुछ सुनकर भी मम्मी पापा इस बार चुप रहे। जैसे वे लता के इस निर्णय पर सहमति का मुहर लगाने तैयार हो गए हों। मम्मी उठकर भीतर कमरे में चली गई तो पापा भी सोफ़े से उठे , मगर वे दरवाज़े से लौट आए। लता के बग़ल में बैठे। सिर पे हाथ फेरते हुए कहा - बेटी तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ भी नहीं है , मगर मेरा कहना है कोई भी निर्णय लेने से पहले सिर्फ़ एक बार और सोच लेना, हम लोगों के बारे में अनिता के बारे में । इतना कहकर पापा अपने कमरे में चले गए। लता भी चुपचाप अपने कमरे में आ गई। कमरे में अंधेरा था, उसने लाईट जलाने की कोशिश नहीं की , धम्म से बिस्तर पर पसर गई और बुदबुदाई - मेरा इंतज़ार करना शशिकांत . मैं कल आ रही हूँ...।
( समाप्त )

रविवार, 10 मई 2020

खुलता-किवाड़ -१२

लता व्याकुल और आतुर हो उठी। दरवाज़ा खुला । कमरे से निकलती हुई रोशनी उस पर पड़ी। वह हड़बड़ा गई। हड़बड़ाहट में होंठ कंपकपाए , होंठों पर ज़बान फेरी और वह प्रश्न करती इससे पहले ही फिर भीतर से आवाज़ आई, कौन आया है? इस बार लता को कोई भ्रम नहीं हुआ , यह आवाज़ उस आदमी की ही थी जिसके प्यार में वह तड़फ रही थी। जिसने लता को इस देश से दूर ले जाने का वादा किया था । परम्परा और समाज से दूर अपनी बाँहों में ज़िंदगी गुज़ारने की वकालत की थी। जिसने लता के बग़ैर अपने अस्तित्व पर ही प्रश्न-चिन्ह खड़ा कर दिया था। और लता के बग़ैर जी नहीं पाने का भरोसा दिलाया था।
कहाँ है शशिकांत ? वह भीतर घुसती चली जा रही थी , रोशनी कमरे में फैली हुई घी , लता का चेहरा ग़ुस्से से तमतमा गया था। उसकी आँखे फैल गई थी। मन में उपजी घृणा के भाव चेहरे पर दिखने लगा था। लता अपने बस में नहीं थी वह लगभग चीख़ते हुए बोली - शशिकांत तुम कनाडा नहीं गए , यहीं हो? और मैं तुम्हारा इंतज़ार करते रोज़ मर रही हूँ। मेरे साथ इतना बड़ा धोखा आख़िर तुमने क्यों किया। यदि तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ तो मुझसे कहकर अलग हो सकते थे। मैंने तुम्हें बाँध तो नहीं रखा था। फिर इतना छल-प्रपंच क्यों?
लता ग़ुस्से में जो मन में आया कहती रही। और फिर अचानक फूट-फूट कर रोने लगी। वह हैरानी से उस आदमी की ओर भी भी देख रही थी जो अब तक उसकी गलियों को चुपचाप सुन रहा था और दरवाज़ा खोलने वाली औरत अवाक् खड़ी लता के ग़ुस्से को देख रही थी।
शशिकांत की ख़ामोशी ने लता के ग़ुस्से को और बढ़ा दिया था । लता रोते-रोते ग़ुस्से से अचानक शशिकांत की तरफ़ लपकने लगी तभी वह औरत दोनो के बीच में खड़ी हो गई। तब लता को अहसास हुआ कि कमरे में कोई और भी है। वह चुपचाप सोफ़े पर निढाल हो गई और ख़ुद को सहेजने लगी।
शशिकांत अब भी ख़ामोशी से लता को निहार रहा था । उसकी आँखें बेचैन थी तब लता की नज़र अचानक वहील चेयर पर पड़ी , उसका सारा ग़ुस्सा काफ़ूर हो गया । तभी पानी! शशिकांत के मुँह से आवाज़ निकली। वह औरत चुपचाप भीतर चली गई। और जब लौटी तो उसके हाथ में दो गिलास थे। एक लता को देते हुए उसने दूसरा गिलास शशिकांत को दिया। पानी पीने के बाद लता ने राहत महसूस की। कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था , मानो कोई है ही नहीं। तभी इस नीरवता को उस औरत ने यह कहते हुए भंग किया कि तुम लता ही हो न। मेरा नाम आरती है। चाय पियोगी और लता का जवाब सुने बग़ैर ही वह भीतर चली गई।
लता अब भी शशिकांत को देखे जा रही थी और शशिकांत भी। आँखें दोनो की भर आई थी , निशब्द , दोनो भीतर तक रो रहे थे ।
तभी आरती चाय लेकर लौटी। शशिकांत को चाय देकर वह लता को चाय का कप थमाते हुए उसके बग़ल में बैठ गई। कोई कुछ नहीं बोल रहा था, पता नहीं क्यों इतनी ख़ामोशी कि कमरे में कोई नहीं । चाय की चुस्कियाँ ही कमरे में किसी के होने का अहसास करा रहा था।
चाय का कप टेबल पर रखते हुए अचानक लता खड़ी हुई । वह जाने के लिए अपना दायाँ पाँव उठाई ही थी कि आरती ने उसका हाथ पकड़कर वापस सोफ़े पर बिठा दिया। लता ने कोई प्रतिवाद नहीं किया ।
इस बार भी कमरे की नीरवता को आरती ने ही तोड़ते हुए कहा- लता ! एक औरत होने के नाते मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकती हूँ लेकिन इसमें दोष किसी का नहीं है। कम से कम शशिकांत का तो क़तई नहीं, वह तो कब से कह रहे थे की तुम्हारे पास सूचना भिजवा दो , वह इंतज़ार कर रही होगी।
फिर आरती ने लता के सामने शशिकांत के साथ घटी दुर्घटना की पूरी कहानी सुनाने लगी। आरती गाँव से कैसे आई । शशिकांत कैसे अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से जूझता रहा । यहाँ तक कि आरती को भी लता की पूरी कहानी का पता था ।
लता जार - जार रोने लगी। शशिकांत के इस हालत के लिए वह स्वयं को दोषी मानने लगी तब आरती ने कहा- देखो लता मैंने तो अपना जीवन इस आदमी के बग़ैर गुज़ारने का निश्चय कर लिया था और गाँव में जी भी रही थी। मगर ईश्वर ने मेरी सुन ली । अब तुम्हारे लिए भी अच्छा है कि तुम आइंदा यहाँ न आओ। मैं जानती हूँ तुम दोनो एक दूसरे से प्यार करते हो मगर अब परिस्थियाँ बदल गई है।शशिकांत की ज़िंदगी से दूर चली जाओ ।
दूर चली जाओ, यह शब्द लता के सीने में किसी हथौड़े की तरह लगा , वह आरती में आई इस अचानक तब्दीली से भौच्चक रह गई । उसने शशिकांत की ओर देखा पर शशिकांत के नज़र फेरते ही वह फट पड़ी, और शशिकांत की चुप्पी पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा - शशिकांत मैं जानती हूँ कि तुम मुझे भूल नहीं सकते। मुझसे तुम अब भी प्यार करते हो , मगर स्वयं की इस हालत की वजह से मुझे तुम छोड़ना चाहते हो मगर सोचो कि यह सब कनाडा जाने के बाद होता , क्या तब भी तुम्हारा यही निर्णय होता। आज तो मैं जा रही हूँ, मगर कल फिर आऊँगी । तब मुझे कोई नहीं रोक पाएगा। लता हार मान जाने वाली में से नहीं थी। और आरती ख़ुद को बेबस पा रही थी , उसने प्रतिवाद करने की कोशिश तो की लेकिन शशिकांत की ख़ामोशी के आगे वह शांत हो गई
और लता फिर आने की घोषणा के साथ घर लौट गई ।

शनिवार, 9 मई 2020

खुलता-किवाड़ -११

लता के लिए एक-एक दिन काटना भारी पड़ रहा था। हालाँकि शशिकांत के कनाडा जाने के बाद से उस पर लगी बंदिशे अब पूरी तरह हट चुकी थी । वह आज़ाद थी । वह कहीं भी आ-जा सकती थी फिर भी उसकी हालत उस पंछी की तरह हो गई थी जिसे सालों पिंजड़े में बंद करने के बाद आज़ाद कर दिया हो , वह उड़ना भूल गई हो या उसे अपनी उड़ान की ताक़त का अन्दाज़ ही नहीं रहा हो।
उसका विश्वास डिगने लगा था , दो माह हो गए थे शशिकांत को कनाडा गए। तब से अब तक उस आदमी की कोई ख़बर नहीं थी । उसने कहा था वह फ़ोन करेगा, ई- मेल भेजेगा। उसने कितनी बार कम्प्यूटर खोलकर इन बाक्स को चेक किया था। वह रोज़ कई बार इन बाक्स को चेक करती और ई- मेल करती। वह अधीर होने लगी। जवाब दो शशिकांत , क्या हुआ शशिकांत , क्या तुम्हें मैं याद नहीं रही। पता नहीं कितने मैसेज लता ने भेजा था ।
वह शशिकांत को लेकर परेशान होने लगी । मन में कई तरह के विचार उठने लगे। लता को लगने लगा कि क्या शशिकांत ने उससे पीछा छुड़ाने कोई बहाना बनाया है? वह उससे पीछा छुड़ाने झूठ बोलकर चला गया? उसे झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी , वह सीधे बोल देता। शशिकांत को खोने का डर उसके मन में घर करते जा रहा था, वह छटपटाने लगती। बेचैन हो जाती। और फिर कुछ न समझ पाने पर रोने लगती। उसके आँसू से तकिया गीला हो जाता।
कभी-कभी लता को लगता कि शशिकांत को खो देने की वजह वह स्वयं है। उसे कनाडा भेजने की क्या ज़रूरत थी। घर वाले देर सवेर मान ही जातें। इतने बड़े देश में कहीं भी रह सकते थे। वह धीरे-धीरे अपराध- बोध से ग्रसित रहने लगी। लता ने पूरी तरह ख़ामोशी ओढ़ रखा था । वह घर में भी बहुत कम बातें करती । उसके इस व्यवहार से मम्मी को भी तकलीफ़ होने लगी थी । मम्मी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसकी ख़ामोशी पर नाराज़गी जताती। लता ने देखा कि मम्मी पापा दोंनो ही उस पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं मगर लता तो उस आदमी के लिए मरे जा रही थी जिसने कनाडा जाने के बाद एक  ई-मेल या फ़ोन तक नहीं किया।
लता अचानक उठ बैठती। खिड़की के परदे हटा कर  घंटो सड़कों को निहारती , कालेज आते व जाते समय कितनी ही बार उसे लगा कि वह आदमी उसके आसपास है। वह मुड़कर देखती और निराश हो जाती । उसकी आँखो की चमक ग़ायब हो जाती। धीरे-धीरे लता सबसे दूर होते जा रही थी। उसे लगता था जैसे कोई उसका अपना नहीं है। वह घंटो बिस्तर पर पड़ी रहती। मम्मी आकर पूछती। बेटा कैसे लग रहा है , दवाई दूँ। पापा कहते चलो डाक्टर के पास चलते हैं । इतनी सी बात पर भी लता चिड़चिड़ा जाती। वह अपने उम्र से बदी दिखने लगी थी।
चलते-चलते अचानक रुक जाना, किसी एक जगह खड़ी होकर वह अक्सर सोचती कि वह आदमी , जो उससे अथाह प्रेम का दावा करता था, उसके बग़ैर कैसे जी रहा होगा? हे भगवान! कहीं वह किसी संकट में तो नही फँस गया है। वह उसका गाँव का नाम तक नहीं जानती , क्या उसके घर जाकर अड़ोस-पड़ोस से पता करना चाहिए? कोई तो होगा जिससे शशिकांत सम्पर्क में होगा ।
फिर एक दिन, एक रविवार लता अपने जड़वत होते क़दम को रोक नहीं पाई , सूरज की रोशनी फिसलते-फिसलते अंधेरे की ओर क़दम रख रही थी। वह उठी, तैयार हुई, अनोखे ढंग से स्वयं को सजाया । दर्पण में स्वयं को निहारा, चेहरे मे मुस्कुराहट लाते माथे पर छोटी सी बिन्दी लगाई और पुनः अपने को निहारा। बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी वो। उस आदमी के कनाडा जाने के बाद वह पहली बार मन लगाकर सँवरी थी।
रोशनी और अंधेरे के संगम पर वह तेज़ी से क़दम बढ़ाते चली जा रही थी। उस आदमी के घर का मोड़ आते ही उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। दूर से ही दरवाज़ा बंद दिखा। उसका सारा उत्साह जाता रहा। उसके पैर अचानक रुक गए। वह जड़वत खड़ी हो गई। वह नहीं समझ पा रही थी कि उसे क्या करना चाहिए , वह तो यहाँ किसी को जानती तक नहीं है। फिर वह किससे पुछे? ऐसे-कैसे किसी का दरवाज़ा खटखटाये?
इससे पहले वह जब भी शशिकांत के घर आई। कितनी ख़ुश होती थी। मगर इस बार लता अपने को सम्भाल नहीं पा रही थी। उसके पाँव काँप रहे थे। मन में एक अनजाना भय था। वह धीरे-धीरे शशिकांत के घर तक पहुँची , तो चौंक गई। दरवाज़ा बंद तो था लेकिन न कुंडी लगी थी न कोई ताला ही दिखा । वह चौंकी ! इसका मतलब घर में कोई है? लता ने सोचा कौन हो सकता हैघर में। इस बारे में उस आदमी ने कभी कुछ नहीं बताया था। उसके जाने के बाद घर बंद होगा, लता यही सोचती रही। लता की आँखो मेन चमक लौट आई। उसे लगा कि अब शशिकांत का पता चल जाएगा। स्वयं को सहज करते हुए लता ने दरवाज़े पर दस्तक दी। भीतर से किसी ने कहा- आरतीऽऽऽऽ ! देखो तो कौन है। लता को यह आवाज़ पहचानी सी लगी । शशिकांत की आवाज़! लता के चेहरे खिल उठे। मन ही मन कहा , पगला गई है। वह आदमी किस क़दर उसके ज़ेहन में समाया हुआ है कि उसे अब किसी और की आवाज़ भी शशिकांत की आवाज़ लगने लगा है।

शुक्रवार, 8 मई 2020

खुलता-किवाड़ -१०

अब वह शशिकांत से मिलने जाती तो सावधानी बरतने लगी थी। लता ने घर में उठे विवाद की जानकारी देते हुए उसे कहीं अन्यत्र मिलने के लिए मना लिया था । अब वे घर के अलावा कहीं और मिलने लगे थे ।
जब भी लता उस आदमी से मिलने जाती उसकी धुकधुकी बढ़ जाती थी । यह धुकधुकी उसके साथ- साथ चलती थी। उसे कई बार लगा कि उसका पीछा किया जा रहा है और जब उसकी आशंका निर्मूल साबित होती तो वह राहत की साँस लेती थी। लता आज सीधे शशिकांत के घर पहुँच गई थी। मोड़ के पास लता को आशंका हुई , वह पलटकर पीछे देखी। दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था । फिर वह दरवाजे को धक्का दी । दरवाज़ा खुलता चला गया और वो भीतर चली गई। दोनो फेंटासी की दुनिया में खो चुके थे । शशिकांत कहे जा रहा था - तुम्हारे बग़ैर कल्पना बेमानी है, तुम मेरे प्राण हो , वह तरह-तरह के अलंकारो और उपमा से लता को रिझा लेता था , और लता फेंटासी की दुनिया में विचरण करने लगती । लता कृत्रिम ग़ुस्सा करती तो वह आदमी बिखर जाता था । उसका यूँ टूटना-बिखरना लता को ख़ूब भाता था। फिर वह एक-एक कर उसे जोड़ती और फेंटासी की दुनिया में खो जाती।
फिर एक दिन वही हुआ जिसकी आशंका थी। दरवाज़े पर दस्तक ने लता की धुकधुकी बढ़ा दी , शशिकांत भी चौंका था। कुंडी खोलते ही दरवाज़ा झटके के साथ खुलता चला गया , शशिकांत हड़बड़ाया और लता के मम्मी पापा सीधे भीतर आ गए । लता भी हड़बड़ाई , खड़ी हुई, चुनरी को व्यवस्थित करने लगी। तब तक मम्मी का हाथ लता के गाल पर जम चुका था । इस अप्रत्याशित घटना से अवाक् शशिकांत ने किसी तरह बीच- बचाव की कोशिश की तो लता रोते हुए सोफ़े पर धम्म से बैठ गई । मगर मम्मी का ग़ुस्सा कम ही नहीं हो रहा था। वह ग़ुस्से में चिल्लाते ही जा रही थी।
बड़ी मुश्किल में हालात सामान्य हुई मगर लता का सुबकना बंद ही नहीं हो रहा था । अब तक शशिकांत की चुप्पी से भी लता हैरान थी । वह कुछ भी नहीं बोला और पापा भी ख़ामोश रहे । बीच-बीच में वह स्थिति को संभालने की कोशिश करते रहे। शशिकांत से पुछा क्या वह लता से शादी के लिए तैयार हैं ? वह क्या चाहता है? ऐसे ढेरों प्रश्न एक साथ पुछे गए । और शशिकांत के इंकार सुनते ही मम्मी की त्योरियाँ फिर चढ़ गई। वह शशिकांत को भला-बुरा कहने लगी। तब लता के बीच में कूदने से मामला और बिगड़ गया।
उस दिन लता को लगभग खींचते हुए घर ले जाया गया। मम्मी इतने ग़ुस्से मेन थी कि उसने लता के घर से बाहर नहीं निकलने का फ़रमान तक सुना दिया । पापा के समझाने पर
लता के कालेज जाने पर इस शर्त पर तैयार हुई, कि उसे कालेज छोड़ने-लेने कोई न कोई जाएगा। इतनी बंदिश से लता बेहद दुखी रहने लगी पर ख़ुशी इस बात की है कि वह शशिकांत से कालेज में मिल लेती थी।
लता के लिए यह किसी त्रासदी से कम नहीं था। पास होते हुए वह उस आदमी की बाँहों मे नहीं समा पा रही थी , जिसे वह बेइंतहा प्यार करती है। उसकी इच्छा होती कि वह सभी बंदिशे एक झटके में तोड़ दे और किराए का अलग घर लेकर रहे मगर शशिकांत ने इसके लिए मना करते हुए कहा था कि मैं भी तो तुम्हारे लिए तड़फ रहा हूँ, वक़्त का इंतज़ार कर रहा हूँ। फिर कहीं दूर शायद दूसरा देश चले जाएँगे । जहाँ समाज और परम्परा के बंधन हमारे मिलन में बाधा नहीं बनेंगे। तुम मेरे साथ चलोगी न ! मैं तुम्हें अभी अपने घर ले जा सकता हुँ मगर तुम जानती हो तुम्हारे मम्मी पापा इसके लिए तैयार नहीं होंगे । वे तभी तैयार होंगे जब मैं तुमसे शादी करूँगा, और तुम जानती हो कि शादी के नाम से ही मुझे चिढ़ है। फिर तुम भी तो तो कभी जीवन मे विवाह नहीं करने का निर्णय लिया है, उस निर्णय का क्या? तुम इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती हो?
लता को लगता कि शशिकांत भी उसे दिलों- जान से प्यार करता है। तभी तो वह उसके मान-सम्मान को लेकर चिंता करता है। काश वह शशिकांत के पास रह पाती। एक तरफ़ सपनो की अनोखी दुनिया और दूसरी तरफ़ कठोर वास्तविकता के बीच लता झुल रही थी। लता सोचती थी कि इस तरह का दोहरा जीवन क्या कोई और जी रहा है।
फिर एक दिन शशिकांत ने बताया कि कनाडा में नौकरी मिल रही है, और वह उसे शीघ्र ही ले जाएगा। तब तक वह धैर्य के साथ रहेगी । लता ख़ुशी से झूम गई , उसका मन नाचने को हो गया वह बेहद ख़ुश होकर घर लौटी थी लेकिन शशिकांत के दूर जाने को लेकर उस रात वह रोई भी बहुत। मन ही मन वह डर भी रही थी कि कहीं वह आदमी उसे कनाडा जाकर भुल तो नहीं जाएगा। वह कनाडा कैसे जाएगी ? क्या वह घर में सब कुछ बता देगी, बग़ैर किसी से कुछ कहे चुपचाप चली जाएगी। वह अपने मम्मी पापा को भी दुखी नहीं करना चाहती थी।
फिर वह दिन भी आ गया , शशिकांत ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। कनाडा जाने से पहले उस आदमी की बाँहों में पूरा दिन गुज़ारने की आस अधूरी रह गई। इस ख़बर से लता के घरवाले भी ख़ुश थे मगर लता के लिए यह असहय । जिस दिन शशिकांत कनाडा के लिए रवाना हुआ लता दिल खोलकर रोना चाहती थी। उस दिन उसे स्वयं पर भी बेहद ग़ुस्सा आया । बार-बार उसके मन में एक ही प्रश्न उठ रहे थे कि आख़िर वह इतना कायर कैसे हो गई, उस आदमी को वह ट्रेन में भी बिठाने नहीं जा पाई, जिसने उसकी ख़ुशी के लिए नौकरी छोड़ दी , देश छोड़ कर जा रहा है।
जबकि उसे याद है कालेज छोड़कर जाने से पहले शशिकांत ने ट्रेन का समय बताते हुए लता से स्टेशन आने का वादा लेते हुए कहा था मेरे लिए तुम्हें छोड़कर कहीं जाना बेहद कष्टदायक है । पता नहीं कितने दिन यह कष्ट झेलना पड़ेगा । तुम नहीं जानती मेरे लिए तुम सब कुछ हो, एक बार स्टेशन आओगी न!
लता के ज़ेहन में उस आख़िरी मुलाक़ात की एक-एक बातें बरसात की बादलों की तरह उमड़-घुमड़ रहे थे। उस आदमी ने लता को कितना ढाँढस बँधाया था , लता ठीक से रो भी नहीं पाई थी। उसका दिल बैठा जा रहा था। लता ने कहा भी था कि उसे साथ ले चलो।
तब शशिकांत ने कहा था लता तुम चिंता मत करो, अभी हमारे लिए वक़्त और घड़ी की सुइयाँ दोनो उलटा घुम रही है, देखना एक दिन इन सुइयों का घुमना रोक दूँगा और हम एक हो जाएँगे।

गुरुवार, 7 मई 2020

खुलता- किवाड़ -९

लता आज कालेज नहीं गई। वह घर से भी नहीं निकली , अपने कमरे से भी। मोहल्ले की कानाफूसी घर में सुनाई देने लगी थी। उस आदमी से लता के सम्बंध को लेकर घर में तीखे सवाल ही नहीं किए गए थे बल्कि लता के चरित्र पर भी उँगली उठाई गई थी।सुबह से शुरू हुई यह किच-किच रुकने का नाम ही नहीं लिया।
इससे पहले भी किच- किच होती रही लेकिन उसके चरित्र पर सवाल नहीं किया गया। जब उसने शादी नहीं करने का निर्णय लिया था तब भी। हाँ, मम्मी ने ज़रूर नाराज़गी दिखाते हुए कहा था कि वह सब यहाँ नहीं चलेगा। मगर इस बार शशिकांत को लेकर जब उसने कहा कि वह उससे प्रेम करती है तो पूरा घर ही उस पर पिल पड़ा था। लता अपने आप को भयंकर आहत महसूस कर रही थी। कोई उसके प्रेम को समझने तैयार नहीं हुआ । क्या कोई बग़ैर शादी किए अपने प्यार को निभा नहीं सकती। एक तरफ़ शशिकांत का प्यार तो दूसरी तरफ़ मम्मी पापा का दूलार । फिर भी वह आज स्वयं को अकेला महसूस क्यों कर रही है।
लता को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक तरफ़ उसका अपना शादी नहीं करने का निर्णय और दूसरी तरफ़ शशिकांत का निश्चल प्रेम।
इसी अंतर्द्वंद में उलझी लता अपनी डायरी निकाल कविता लिखने लगी -
प्रेम का अंत क्या कोई रिश्ता है
प्रेम को कोई रिश्ते
का नाम देना ज़रूरी है
जब राधा और कृष्ण का
प्रेम जब स्वीकार्य है
तब इस राधे के लिए
बंधन क्यों
पता नहीं लता और भी क्या - क्या लिखते रही ।
कविता लिखने के बाद उसे थोड़ी राहत मिली , तब वह कमरे से बाहर निकली। किसी ने उसे कुछ नहीं कहा , मगर सबके चेहरे से स्पष्ट था कि उससे अभी भी सब नाराज़ हैं। वह किसी भी हालत में शशिकांत को खोना नहीं चाहती थी और न ही अपने मम्मी पापा को। घर वालों के स्पष्ट चेतावनी से वह विचलित थी। वह चुपचाप किचन में गई उसको खाना खाने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी। मगर मम्मी की चेतावनी की वजह से वह किचन तक आई थी। मम्मी ने साफ़ कर दिया था कि यदि वह आज खाना नहीं खाएगी तो उसके लिए इस घर में कभी खाना नहीं बनेगा , ख़ुद बनाना और ख़ाना।
घर वालों की नाराज़गी कम करने का लता के लिए यह एक अवसर था। इसलिए इच्छा न होते हुए भी उसे खाना पड़ा। पता नहीं क्यों दूसरे के ख़ुशी के लिए अपनी इच्छाओं का गला घोंटना पदता है। एक बार लता ने यह सवाल शशिकांत से भी पूछा था, तब शशिकांत ने कहा था कि रिश्ते निभाने के लिए स्वयं की ख़ुशी का उस हद तक तिलांजलि नहीं देना चाहिये जिससे कोई ज़िंदा लाश बनकर रह जाये। पूरी दुनिया ही उजड़ जाने का आभास हो।
एक तरफ़ वह आदमी था जो उसकी हर प्रश्नो का सहज रूप से जवाब देता था, उसके हर निर्णय पर मुस्कुराकर सहमति देता था, दूसरी तरफ़ उसका अपना कहा जाने वाला घर था । जहाँ परम्परा, संस्कार की दुहाई के साथ इस बात के लिए भी पाबंदी थी कि दुनिया क्या कहेगी? समाज क्या कहेगा?
लता का मन विद्रोह करने के लिए आमदा था । पर वह अपने पापा से बहुत प्यार करती थी । पापा ने उसे हर मुश्किल राह में उसका साहस बढ़ाया था। मम्मी की परम्परा और मर्यादा में रहने की चेतावनी के समय भी पापा ने ही उसका साथ दिया था। लता के लिए किसी एक को पुरी तरह छोड़ देना आसान नहि था, इसलिए वह बेहद परेशान रहने लगी थी।
ऐसे में शशिकांत का लता के घर जाने को लेकर बढ़ते दबाव से लता चिंतित होने लगी। पहले तो लता ने किसी न किसी तरह का  बहाना बनाकर उसे  इधर-उधर की बातों में उलझा देती थी , मगर इन दिनो शशिकांत ज़िद पर उतर आया था । तब लता को बताना पड़ा कि उसे लेकर इन दिनो घर में तनाव है, ऐसे में वह घर आया तो लता की मुसीबत बढ़ जाएगी और हो सकता है शशिकांत को अपमानित भी होना पड़े। लता सब कुछ सहन कर सकती थी अपना अपमान भी वह सह रही थी लेकिन शशिकांत के अपमान को वह किस तरह बर्दाश्त करेगी।
यह बात सही थी पापा भले ही वक़्त की नज़ाकत को भाँप कर शशिकांत के सामने कुछ नहीं कहते। मगर मम्मी तो चुप रहने वाली नहीं है। वह सीधा कहती तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस घर में क़दम रखने की। तुरंत निकलो , तब लता क्या बोलती। उसे याद है कालेज के दिनो मे एक लड़का नोट्स लेने घर तक आ गया था , पापा उसे भीतर ले आए थे, मगर मम्मी ने उसे इतना भला-बुरा कहा कि फिर किसी की उसके घर आने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि इस घटना का पुरे कालेज में ख़ुलासा हो गया था, और उसका ख़ूब उपहास भी उड़ाया गया था। इस घटना को लता आज तक नहीं भूली है।
लता को महसूस होने लगा था कि घर वाले उस आदमी को लेकर जितनी पाबंदी लगा रहे है, उतना ही उसका प्रेम बढ़ता ही जा रहा है। हर पाबंदी के बाद वह अपने प्रेम को नया रूप देने लगती।

बुधवार, 6 मई 2020

खुलता - किवाड़ -८

ज़िंदगी रुक नहीं सकती , किसी भी समय नए जीवन की शुरुआत हो सकती है। लता का हाल इन दिनो बिलकुल ऐसा ही था। लता का सम्बंध एक ऐसे आदमी से बन गया था जिसे वह ठीक से जानती तक नहीं थी , ऐसे आदमी के प्रति समर्पण को लेकर वह इन दिनो अंतर्द्वंद में थी। एक बार उसे लगता वह ठीक कर रही है मगर दूसरे ही पल वह अपने निर्णय को लेकर परेशान हो जाती थी
शशिकांत ने साफ़ कर दिया था कि वह भी लता से बेइंतहा प्रेम करता हाई। वह जब चाहे उसके घर आ सकती है। एक बार शशिकांत ने कहा था लता मैंने जीवन में शादी नहीं करने का निर्णय लिया था परंतु मैं कितना ग़लत था।
लता के मन में अब भी उसे लेकर संदेह था , वह उससे कई प्रश्न करना चाहती थी मगर लता को डर भी था कि कहीं उसके प्रश्नो के उत्तर की बजायवह बुरा मान गया तो?
शशिकांत ने एक बार बताया था कि उसकी शादी बचपन मे ही अनिता से की गई थी , उस शादी को मैं नहीं मानता लेकिन अनिता अब भी उसका इंतज़ार करते गाँव में बैठी है। उसका राह देख रही है। लता ने तब पुछा था कि वह कैसे दिखती है ? तब उसने लता को कहा था कि तुम्हारे पैर की धोवन है। लता तब बहुत ख़ुश हुई थी लेकिन घर आने के बाद उसे पैर की धोवन शब्द को लेकर बहुत बुरा लगा था । औरतों के प्रति शशिकांत के इस सोच को लेकर वह परेशान भी हुई थी।
अनिता के प्रति लता की पूरी सहानुभूति थी और वह यदा कदा शशिकांत के सामने उसका ज़िक्र करती थी। उसके ज़िक्र से कई बार शशिकांत बुरी तरह नाराज़ भी हुआ , एक बार तो उसने यहाँ तक कह दिया कि अब के बाद यदि उस अनपढ़ का नाम भी लिया तो वह उससे बात भी नहीं करेगा।
लता इस व्यवहार को लेकर दुखी भी हुई , आख़िर अनिता के अनपढ़ रहने में उसकी क्या ग़लती है, मगर उसने यह सोचकर चुप्पी साध ली कि जब उस आदमी को ही अनिता की परवाह नहीं है, तब भला वह परवाह क्यों करे।
इधर लता के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर मोहल्ले तक में काना-फुंसी होने लगी थी। लता यह सब जान समझ रही थी । उसके लिए क़दम पीछे खींचने का सवाल ही नहीं उठता था । उसने महसूस किया था किअब तो उसके आने और जाने को लेकर शशिकांत के मोहल्ले में भी कानाफुसी होने लगी थी। एक दिन तो एक छिछोरे टाईप लड़के ने बड़े ही भद्दे कमेंट्स पास किया तो उससे रहा नहीं गया और वह उससे जा भिड़ी। चौराहे में तमाशा खड़ा हो गया। जितनी मुँह उतनी बात। लता को तब अपने आप पर बहुत ग़ुस्सा आया कि वह आख़िर ऐसे लोगों के मुँह क्यों लगी।
उसने शशिकांत से भी ज़िक्र किया कि कैसे उसे लेकर मोहल्ले में चर्चा हो रही है। तब शशिकांत ने इतना ही कहा था कि इसके लिए तुम ही ज़िम्मेदार हो , मैं तो कब से कह रहा हूँ कि हम एक हो जाये।
एक हो जायें? लता घर जाने के बाद इस वाक्य को लेकर गुनती रही। कैसे एक हो जायें। लता आख़िर शशिकांत को जानती ही कितना है, लता को और कितना जानना था, उस आदमी को। तीन चार माह हो गए थे, वह रोज़ ही तो उस आदमी से मिल ही रही थी। फिर क्या बाक़ी रह गया है जानने समझने में। फिर भी लता को क्यों लग रहा था कि शशिकांत को अभी और जानना समझना है।
बात चारदिवारी से निकल चुकी थी , दिलों की धड़कन अब कानाफूसी तक आ पहुँची है। मगर कब तक यह सब चलता रहता? इस सम्बंध का क्या होगा? दोनो की ज़िंदगी में क्या मोड़ आने वाला है?