लता के लिये यह सवाल सचमुच चौंकाने वाला था। वह सवाल सुन ठिठक गई थी । पाँव जैसे ज़मीन पर जम गये थे। उसने गणित में पीएचडी करने के बाद महाविद्यालय में नौकरी करते हुए एकाकी जीवन जीने का निर्णय लिया था । उसके इस निर्णय को लेकर मम्मी-पापा यहाँ तक कि भाई ललित ने भी विरोध किया था। लता को समझाने की कोशिश अब भी जारी थी। परंतु लता ने तो जैसे तय कर लिया था , हमेशा अपने निर्णय पर अडिग और कुशाग्र बुद्धि की लता को लेकर मोहल्ले में भी उसके इस निर्णय की चर्चा कम नहीं होती थी, परिवार , समाज में भी उसे समझाने की कितनी ही कोशिश नहीं हुई ? परंतु लता को इन बातों कीजैसे परवाह ही नहीं थी। चाँद सा सुंदर चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखे लता के व्यक्तित्व को निखारने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखा था।
विजय और सुषमा की यह लाड़ली शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी, और इन दिनो वह शहर के सबसे प्रतिष्ठित विक्टर कालेज में गणित के प्रोफ़ेसर के रूप में नौकरी कर रही थी। कालेज में पढ़ाते उसे दो माह हो गये थे और इन दो माह में उसने अपने कार्य और व्यवहार से सभी का मन जीत लिया था।
आज भी वह अपना पहला पिरिएड समाप्त करने के बाद दूसरे पिरिएड के लिये जल्दी-जल्दी रूम नम्बर ३६ की ओर बढ़ रही थी, तभी रूम नम्बर १९ से यह सवाल उसके कान से होते हुए मस्तिष्क तक जा पहुँचा । सवाल सुन कर वह चौकी ही नहीं थी , उसके क़दम भी रुक गये थे।
लता ने दरवाज़े के किनारे से झाँकने की कोशिश की तो शशिकांत पांडे की नज़र भी उस पर पड़ गई। वह हड़बड़ा गई थी , और इस हड़बड़ी में वह तेज़ी से आगे बढ़ गई। परंतु सवाल अब भी उसके मस्तिष्क में गूँज रहा था, कि आख़िर दो और दो चार क्यों होते हैं, तीन या पाँच क्यों नहीं होते ।
लता क्लास रूम में पहुँच गई थी और लेक्चर देने भी लगी, परंतु उसका ध्यान इस सवाल से हट ही नहीं पाया। इस सवाल के साथ उसके मस्तिष्क पर एक और सवाल तैर रहा था कि आख़िर शशिकांत पांडे जी हिंदी की बजाय गणित के ऐसे सवाल क्यों कर रहे थे? वह शशिकांत पांडे जी के बारे में इतना ही जानती थी कि वे हिंदी के न केवल प्रखंड विद्वान हैं बल्कि उनकी कई किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती है। कालेज के बाद बचे समय पर वे पुरोहिती या ज्योतिष का कार्य भी करते हैं।
लता को अभी दो पिरिएड और लेने थे परंतु उसका ध्यान तो दो और दो चार पर ही उलझ गया था। उसने कितनी ही बार इस सवाल को झिढ़कने की कोशिश भी की । वह जब तीसरा और चौथा पिरिएड लेकर स्टाफ़ रूम में पहुँची तो , उसने शशिकांत से इस सवाल को लेकर चर्चा करने की सोच ली थी , परंतु यह क्या स्टाफ़ रूम में शशिकांत नहीं थे। उसने शशिकांत के आने की प्रतीक्षा करने की सोच पास ही रखी पत्रिका उठाकर कुर्सी पर बैठ गई, और पत्रिका का पन्ने पलटने लगी परंतु उसका ध्यान दरवाज़े पर ही लगा रहा। उसका ध्यान तब टूटा जब मीना मैडम की आवाज़ आई, अरे लता आज घर नहीं जाना है क्या ? वह चौंकी ! उसे कुर्सी पर बैठे आधा घंटे हो गए थे । उसने हड़बड़ी में पत्रिका बाज़ू की कुर्सी में रखते हुए कहा था , पांडे जी से कुछ चर्चा करनी है। मीना ने तपाक से जवाब दिया था, वे तो कब से चले गये हैं ।
लता के चेहरे पर झुँझलाहट साफ़ देखी जा सकती थी । वह अपना बैग उठाते हुए स्टाफ़ रूम से बाहर निकल गई । सवाल के चक्कर में लता को इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि पांडे जी हर रोज़ पहले ही चले जाते हैं । रास्ते भर लता सवाल में ही उलझी रही। उसे याद नहीं पड़ रहा था कि उसने दो और दो चार ही क्यों? का सवाल किसी क्लास में पढ़ा हो? वह बार-बार यही सोच रही थी कि यह कैसा सवाल है? दो और दो तीन या पाँच क्यों नहीं ? चार ही क्यों ?
गणित में टॉप करने वाली लता इस सवाल में ऐसा उलझ गई थी कि उसे पता ही नहीं चला कि घर कब पहुँच गई। घर आकर वह नियमित दिनचर्या में जुट गई और सवाल काफ़ी पीछे छूट गया था। हालाँकि सवाल के छूटने की वजह लता का वह निर्णय था कि अब वह कल सीधे शशिकांत से चर्चा कर लेगी।
लता का यह स्वभाव था कि वह अपने निर्णय पर मूड कर नहीं देखती थी । वर्तमान को अच्छी तरह से जीने वाली लता की दिनचर्या में शाम का खाना बनाना शामिल था । वह जब पढ़ाई के दौरान कालेज पहुँची थी , तभी से घर के काम में हाथ बँटाने लगी थी और जब ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की तब उसने अपना निर्णय सुना दिया था कि अब से वह शाम का खाना स्वयं बनाएगी । तब मम्मी-पापा दोनो ने मना किया था परंतु लता ने साफ़ कह दिया था कि वह खाना बनाएगी। तब से वह शाम का खाना बनाने लगी थी ।
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